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संकल्पित मन में किन्ही बहानों की कोई सम्भावना नहीं रहती।

संकल्प स्वयं में पूर्ण होता है। संकल्प का अर्थ है- वह मनोदशा जिसका कोई विकल्प न हो। यदि विकल्प है, तो वह संकल्प नहीं हो सकता। वह मन की कामना, कल्पना, विचारणा, भावना या चाहत यदि कुछ भी हो सकता है। इसे आधा-अधूरा या सुषुप्त संकल्प भी कह सकते हैं, जागृत संकल्प नहीं। ऐसे में मान सकते हैं कि अभी इसका समय नहीं आया है। इसे अभी और पकने की जरूरत है। जागृत संकल्प वह है, जो अपने लक्ष्य के प्रति सजग है, अटल है, अडिग है। किसी भी कीमत पर लक्ष्य को साधने की जिसमें दृढ़ता है। जागृत संकल्प अपने उद्देश्य के लिए हर कीमत को चुकाने को तैयार होता है। ऐसे व्यक्ति की प्राथमिकता स्पष्ट होती है। अपने लक्ष्य पर केन्द्रित होकर वह अपने मनोयोग, पुरुषार्थ को नियोजित करता है। क्रमशः सफलता के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनने लगती है, साधन जुटते जाते हैं और जहाँ चाह- वहाँ राह की उक्ति चरितार्थ होने लगती है। राह में बाधाएँ आती तो हैं, लेकिन हर बाधा की अग्निपरीक्षा को पार करते हुए, यह संकल्प और भी ज्यादा निखरता है।



बाधाओं पर विजय के साथ संकल्प और दृढ़ होता है, राह की सफलताएँ आत्मविश्वास बढ़ाती हैं व क्रमशः कार्य सरल प्रतीत होने लगता है। ऐसा लगता है कि जैसे ईश्वरीय कृपा बरस रही हो। संकल्प शक्ति के अभाव में मात्र कल्पना और विचारणा दिवास्वप्न बनकर रह जाते हैं। राह की छोटी-सी बाधा व व्यवधान कार्य को छोड़ने के बहाने बन जाते हैं, लेकिन संकल्पित मन में किन्ही बहानों की कोई सम्भावना नहीं रहती। वह तो हर कीमत पर इसे पूरा करने के लिए तैयार रहता है। दृढ़ संकल्प के अभाव में तमाम योजनाएँ यों ही धरी-की-धरी रह जाती है। जागृत संकल्प ही तमाम तरह की बाधाओं के बीच व्यक्ति को पार लगाता है व उसे आगे बढ़ने की राह दिखाता है। इसलिए जो भी जीवन में सफलता चाहते हों उन्हें सदा अपनी संकल्प शक्ति को मजबूत बनाना चाहिए। व्यक्ति की प्रचण्ड संकल्प शक्ति, अदम्य साहस से भरा सतत प्रयास-पुरुषार्थ के आधार पर ही अभीष्ट मनोरथ पूरे होते हैं और व्यक्ति लक्षित मंजिल तक पहुँच जाता है।

( संकलित व सम्पादित)

- अखण्ड ज्योति जून 2019 पृष्ठ 15


1 Comment


Piyush Yadav
Piyush Yadav
Apr 18, 2021

Jai Gurudev Jii ❤❤❤🌹🌹🌹

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