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आरोग्य रक्षा के तीन अचूक नियम


आरोग्य रक्षा के चिकित्सा का क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ रहा है। किन्तु जन स्वास्थ्य की दिशा में कोई प्रगति नहीं दिखाई दे रही । तरह-तरह की औषधियों का निर्माण चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन तथा वैद्य, हकीमों, की जितनी बढ़ोत्तरी इन दिनों हुई है, आरोग्य की समस्या जटिल होती दिखाई दे रही है । पड़े हुए साधनों से लाभ न हो तो यही समझना चाहिए कि हमारी जीवन पद्धति में कुछ दोष है । उसका स्वास्थ्य वाला पहलू कुछ अबूझ-सा है या उधर मनुष्य का ध्यान कम है। कुछ भी हो आरोग्य के जो मूलभूत प्राकृतिक सिद्धान्त हैं उन्हें मिटाया या भुलाया नहीं जा सकता। जीवन पद्धति में दोष हो तो औषधियों का कुछ महत्व नहीं, कोई उपयोगिता नहीं।


आरोग्य मनुष्य की साधारण समस्या है। थोड़े नियमों के पालन, साधारण-सी देख-रेख से वह पूरी हो जाती है किन्तु उतना भी जब मनुष्य भार समझकर पूरा नहीं करता तो उसे कडुआ फल भुगतना पड़ता है। थोड़ी-सी असावधानी से बीमारी तथा दुर्बलता को निमन्त्रण दे गैठता है। रहन-सहन में यदि पर्याप्त संयम रखा जाय तो कुछ थोड़े-से नियम है, जिसका पालन करने से मनुष्य आयु पर्यन्त उत्तम स्वास्थ्य का मुखोपभोग प्राप्त कर सकता है। उनमें से तीन प्रमुख हैं । (१) प्रातः जागरण (२) उषा पान (३) वायु सेवन । यह तीनों ही नियम सर्वसुलभ और पनिकर हैं, उनमें किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं जीनका पालन न हो सके, या जिसके लिए विशेष साधन जुटाने की आवश्यकता पड़े। प्रातः जागरण को संसार के सभी लोगों ने स्वाम्य के लिए अतिशय हितकर माना है। अग्रेजी कहावत है "जल्दी सोना और जल्दी उठना मनुष्यकोम्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है।"

'ब्राह्म मुहूर्ते उत्तिष्ठेत्स्वस्थेअरक्षार्थ मायुषः ।'

प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में जाग उठने से तन्दुरुस्ती और उम्र बढ़ती है।

वेद का प्रवचन है –

उदय सूर उदिताअनामा मित्रो अर्थमा।

सुवाति सविता भगः ।। साम ।३।५॥

अर्थात्-प्रातःकालीन प्राण-वायु सूर्योदय के पूर्व तक निर्दोष बनी रहती है अतः प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए । इससे स्वास्थ्य और आरोग्य स्थिर रहता हैं तथा धन की प्राप्ति होती है।"

सिक्खों के धर्म ग्रन्थों में आया है-"अमृत बेला सचनाऊ"

अर्थात् प्रातःकाल जल्दी न उठने से बुद्धि मन्द पड़ जाती है, मेधा नहीं बनती और स्वास्थ्य गिर जाता है। आरोग्य रक्षा के नियमों में प्रातःकाल जागने में विश्व का एक मत है।



प्रातःकाल जल पीना आरोग्य रक्षा की दूसरी महत्व- पूर्ण कुजी है।

सूर्योदय से पूर्व शैया त्यागते ही बिना शौचादि गये शाम के रखे हुए जल का पान करना 'ऊषा-पान' कहलाता है । जल की मात्रा एक पाव से लेकर तीन पाव तक हो सकती है। जिस बर्तन में जल रखा हो तांबे का हो तो अधिक अच्छा है । यदि यह सम्भव न हो, तो किसी भी स्वच्छ बर्तन में रखा जा सकता है । वैद्यक ग्रन्थों में 'ऊषा पान' को 'अमृत-पान' कहा गया है । स्वास्थ्य के लिए उसकी बड़ी प्रशंसा की गयी है और यह बताया गया है कि जो प्रात:काल नियमित रूप से जल पीते हैं, उन्हें बवासीर, ज्वर, पेट के रोग, संग्रहणी, मत्र रोग, कोष्टबद्धता, रक्त-पित्त विकार, नासिका आदि से रक्त स्राव, कान सिर तथा कमर के दर्द, नेत्रों में जलन आदि व्याधियां दूर हो जाती हैं। वैदिक ग्रन्थों में लिखा है कि सूर्योदय से पूर्व आठ अञ्जलि जल पीने से मनुष्य कभी बीमार नहीं पड़ता, बुढापा नहीं आता और सौ वर्ष से पूर्व मृत्यु नहीं होती। प्रातःकाल जल पीने से आंतों में लगा हुआ मल साफ होता है और उनमें पुष्टता आनी है। गुर्दे शक्तिशाली बनते हैं। आँखों की ज्योति बढ़ती है, बाल सफेद नहीं होते, बुद्धि तथा शरीर निर्मल रहता है, जिससे वह सब प्रकार के रोगों से बचा रहता है।



स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रातः जागरण का वास्तविक लाभ वायु सेवन से है। यदि कोई प्रातःकाल उठकर कुछ दूर शुद्ध वायु में घूमने जाया करे तो निश्चय ही उसकी आयु लम्बी होगी। जिस स्थान

पर मनुष्य तथा अन्य प्राणी बहुतायत से निवास करते हैं, उनके द्वारा निरन्तर साँस छोड़ने तथा चीजों को मैला करते रहने से उस स्थान का वातावरण शुद्ध नहीं रहता । वायु में दोष आ जाने से वह लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। किन्तु आबादी के बाहर के स्थान वृक्षों द्वारा निरन्तर शुद्ध किये जाते रहते हैं । इसलिए गांव या नगर के शांत वातावरण में कुछ देर रहकर आरोग्य लाभ किया जा सकता है।


स्वास्थ्य और आरोग्य रक्षा के लिए यह तीन अचूक नियम हैं । स्वास्थ्य जैसी साधारण समस्या के लिए किसी कठोर व्रत की आवश्यकता नहीं है । कोई भी व्यक्ति इन नियमों का पालन करते हुए आरोग्य लाभ प्राप्त कर सकता है । यह तीन प्रहरी ऐसे हैं जो सब तरफ से हमारे स्वास्थ्य की रक्षा और शरीर को पोषण प्रदान करते हैं, इन्हें सजग रखें तो कोई रोग तथा शारीरिक व्याधि हमें कष्ट व पीड़ा न दे सकेगी।


युग निर्माण योजना, मार्च १९८८


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