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शिक्षा से स्वावलंबन


महाविद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों से उनकी शिक्षा का उददेश्य पूछा जाए तो 99 प्रतिशत विद्यार्थियों का उत्तर होगा-ऊँची शिक्षा प्राप्त कर हमें जीविकोपार्जन के अच्छे साधन मिल सकेंगे। आज से 50 साल पहले हायर सेकेंडरी या इंटर पास छात्रों को मास्टर या क्लर्क की नौकरी मिल जाया करती थी। आज उन्हीं पदों पर काम करने के लिए एम. ए., पी-एच. डी. पास लोग भी दाँव लगाते हैं। ये सब देखकर ऐसा लगता है कि ऊँची शिक्षा सामान्य स्तर की जीविका भी उपलब्ध कराने में पूरी तरह समर्थ नहीं है; क्योंकि नौकरी पाने के लिए बाजी ही नहीं, एडी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। हमारे देश में ऊँची शिक्षा वैसे ही महँगी है। इसके लिए धन जुटाना हर आदमी के वश की बात नहीं। महँगी किताबें, कॉलेज के उपयुक्त रहन-सहन, बाहर से आने वाले छात्रों का आवास और भोजन सब-का-सब बहुत खरचीला है। विद्यार्थी पढने के अतिरिक्त और कुछ कर नहीं सकता। इसका अर्थ है-वह जब तक विद्यार्थी रहेगा; किसी रोजगार की व्यवस्था नहीं कर सकेगा।

उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार अपने देश में लाखों डॉक्टर एवं इंजीनियर बेरोजगार हैं। तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वालों की यह स्थिति है; फिर जिन्होंने सैद्धांतिक ज्ञान को अर्जित किया है। उनकी क्या दशा होगी? कल्पना करना बहुत आसान है। चपरासी-क्लर्क जैसी नौकरियों के लिए भी स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त व्यक्ति प्रत्याशी बनकर आते हैं, तो दूसरे कम पढ़े-लिखे लोग या अनपढ़ उनसे क्या बुरे हैं, जो अपनी पान की दुकान पर बैठकर या रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पाल लेते हैं।वस्तुत: हमारे बहुत से शिक्षा शास्त्रियों के मस्तिष्क में यह बात आई ही नहीं है कि शिक्षा और रोजगार का भी कोई संबंध है। आई भी हो तो शायद वे इस पर अमल करना नहीं चाहते। कला, कला के लिए' के सिद्धांत का विरोध बहुत हो चुका। विद्वानों ने इसकी व्यर्थता का अनुभव भी खूब अच्छी तरह कर लिया है। उसी प्रकार शिक्षा केवल शिक्षा के लिए', इस भ्रम को भी तोड़ना चाहिए।आज गाँव-गाँव में स्कूल और नगर कस्बो में कॉलेज तथा यूनिवर्सिटी खोली जा रही हैं परन्तु सब युवा आक्रोश और असंतोष को भडकाने पर ही सिद्ध होंगी। बेकारी की समस्या का समाधान कहीं दिखाई ही नहीं देता।शिक्षा रोजगारपरक हो। ऐसी शिक्षा वह जिसमें जीवन-विद्या का समावेश हो; तभी इस बड़ी समस्या से निजात पाया जा सकेगा। जनसंख्या में संतुलित वृद्धि ही हो; अन्यथा अगले दिनों समस्या और भी भयावह हो सकती है।


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

युग निर्माण योजना

नवंबर 2019


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