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मुझे नहीं चाहिए! ऐसा कहने वाले को बहुत मिलता है।



जिसे न्याय और अन्याय का ज्ञान है, जो लेने योग्य और न लेने योग्य का भेद समझता है, ऐसे श्रेष्ठ पुरुष का घर ढूँढती-ढूँढती लक्ष्मी स्वयं उसके पास पहुँच जाती है। दूर की न सोचने वाला लालची व्यक्ति नष्ट हो जाता है और जो यह कहता है कि मुझे नहीं चाहिए, उसे बहुत मिलता है। पाप को कोई पचा नहीं सकता, इसलिए अधर्म का धन खाने की इच्छा मत करो। पारा कितना लुभावना है, फिर भी कोई उसे पचा नहीं सकता है। अधर्म की कमाई भली मालूम पड़ती है, पर उसका पचना 'लोहे के चने' जितना कठिन है। लोभ का पाश ऐसा है, कि इसमें अच्छे-अच्छे समझदार मनुष्य भी फँस जाते हैं और उस जाल में जैसे-जैसे फड़फड़ाते हैं, वैसे ही वैसे और अधिक फँसते जाते हैं। लालच मनुष्य से कौन सा बुरा काम नहीं करा सकता? किन्तु उदार विचार वाला मनुष्य दूसरों को अपना समझता है और उनके धन को विराना नहीं मानता। आत्मीयता की भावनाएँ उसके मन में प्रवेश कर लेती है, वह थोड़े में गुजारा कर लेता है और कहता है- बस! मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है, मुझे और कुछ नहीं चाहिये।

( संकलित व सम्पादित)

- अखण्ड ज्योति मार्च 1942 पृष्ठ 1

 
 
 

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