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पराजय, विजय की पहली सीढ़ी है


यदि सच्चा प्रयत्न करने पर भी तुम सफल न होओ तो कोई हानि नहीं। पराजय बुरी वस्तु नहीं है, यदि वह विजय के मार्ग में अग्रसर होते हुए मिली हो। प्रत्येक पराजय, विजय की दिशा में कुछ आगे बढ़ जाता है। यह उच्चतर ध्येय की ओर पहली सीढ़ी है।


हमारी प्रत्येक पराजय यह स्पष्ट करती है कि अमुक दिशा में हमारी कमजोरी है, अमुक तत्त्व में हम पिछड़े हुए हैं या किसी विशिष्ट उपकरण पर हम समुचित ध्यान नहीं दे रहे हैं। पराजय हमारा ध्यान उस ओर आकर्षित करती है, जहाँ हमारी निर्बलता है, जहाँ मनोवृत्ति अनेक ओर बिखरी हुई है, जहाँ विचार और क्रिया परस्पर विरुद्ध दिशा में बह रहे हैं, जहाँ दु:ख, क्लेश, शोक, मोह इत्यादि परस्पर विरोधी इच्छाएँ हमें चंचल कर एकाग्र नहीं होने देती।


किसी न किसी दिशा में प्रत्येक पराजय हमें कुछ सिखा जाती है, मिथ्या कल्पनाओं को दूर कर हमें कुछ-न-कुछ सबल बना जाती है, हमारी विच्छृंखल वृत्तियों को एकाग्रता का रहस्य सिखा जाती है। अनेक महापुरुष केवल इसी कारण सफल हुए क्योंकि उन्हें पराजय की कड़वाहट को चखना पड़ा था।


पं श्रीराम शर्मा आचार्य

अखण्ड ज्योति-फर.1948 पृष्ठ 1


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