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देश,काल, पात्र के अनुरूप व्यवहार में परिवर्तन करने वाले प्रसन्न रहते हैं।


आदर्शवादी सिद्धान्तों पर अडिग रहना और अपने निजी जीवनचर्या को उसी ढाँचे में ढालना-इतने भर का आग्रह रखना पर्याप्त है। सभी वैसा करेंगे, वैसी अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। अवांछनीयता को सुधारने के कई तरीके हैं। उसके लिए विरोध, असहयोग और संघर्ष तक के तरीके काम में लगाये जा सकते हैं, पर वे कटु प्रयास भी अपनी शालीनता गँवा बैठने जैसे नीचे स्तर पर उतरकर नहीं होने चाहिए। दुराग्रही व्यक्ति प्रायः रुष्ट, असन्तुष्ट पाए जाते हैं। बदली हुई परिस्थितियों में अपने चिन्तन एवं व्यवहार को बदलने की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए जो तैयार रहते हैं, वे प्रसन्न रहते पाये जाते हैं। जिन्हें देश, काल पात्र के अनुरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करना आता है, समझना चाहिए कि उन्हें संसार में रहना, हल्का-फुल्का जीवन जीना आ गया। अड़ियल लोग ही प्रायः हैरान पाये जाते हैं। दूसरों की निन्दा या प्रशंसा पर लहराने वालों को भी एक तथ्य जानना चाहिए, कि इसके पीछे प्रायः चाटुकारिता या ईर्ष्या काम करती है। ऐसी दशा में सामान्य जनों को न तो प्रशंसा का कोई महत्व है और न ही निन्दा का। उनका महत्व तो तब बनता है, जब किसी विवेकवान व्यक्ति द्वारा गहरी छान-बीन करने के उपरान्त कोई निष्कर्ष निकाला और सुधार प्रोत्साहन के उद्देश्यों को सामने रखकर व्यक्त किया गया हो। उद्देश्य और काम का सही स्वरूप समझना मात्र अपने लिए ही सम्भव हो सकता है। इसीलिए यदि निन्दा प्रशंसा का कोई महत्व माना जाय तो वह आत्म अवलोकन, आत्म निरीक्षण के आधार पर अपने द्वारा ही प्रस्तुत की गई होनी चाहिए। अपने काम ही अपनी प्रसन्नता के आधार हो सकते हैं। अपने लोगों के साथ रहकर भी प्रफुल्ल रहा जा सकता है। अपनी परिस्थितियों को सँभालने और सुधारने का कार्यक्षेत्र भी इतना है, जिसमें कौशल व्यक्त करते हुए किसी के लिए भी प्रसन्न रहने और रखने का आधार बना रह सकता है। नई वस्तुओं में, नई परिस्थितियों में, नये व्यक्तियों में प्रसन्नता खोजते फिरने की अपेक्षा यही अच्छा है, कि जो कार्य क्षेत्र एवं परिकर उपलब्ध है, उसी का स्तर उठाने में अपना कौशल प्रदर्शित किया जाय और पुरुषार्थ के आधार पर प्रसन्न रहने का अपना स्वरूप बना लिया जाय।

( संकलित व संपादित)

- अखण्ड ज्योति मार्च 1983 पृष्ठ 8

 
 
 

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