काम करें तब कुछ बोले
- Akhand Jyoti Magazine
- Mar 24, 2021
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यदि हमारा विचार है कि जिस दशा में हम हैं, उससे भी कहीं उत्तम दशा में होते, तो संसार की अच्छी सेवा कर सकते और अपनी वर्तमान दशा के अनुसार हम यथाशक्ति अखिल विश्व की सेवा में अपनी छोटी शक्ति का सदुपयोग कर रहे होते। हमारी सेवा करने की लालसा है, लेकिन सामग्री का अभाव है तो उस प्रथम अंकुर की रक्षा करें और दूसरों की सहायता करें। अच्छा यही है कि पहले हम काम करें तब कुछ बोलें। यह नहीं कि काम करने के पहले ही बक-बक करने लगें।

सबसे अच्छी बात तो यही है कि कार्य करें और एकदम चुप रहें। सच्ची सेवा इसी में है कि हम अपने जीवन को दूसरे के जीवन के साथ मिला दें। यह प्रकट करने की चेष्टा कदापि न करें कि हम एक अनुकरण योग्य पुरुष हैं। एक आम का वृक्ष है अपने पल्लव-अंचल को डुला-डुला कर आने वाले राहगीरों को पँखा झलता है। अपने हाथ पर बैठी हुई कोयल से दूर-दूर के राहगीरों को हुँकार करने को कहता है। वृक्ष के नीचे आने वाले अतिथियों को दातौन (दन्तधावन), शीतल छाया, पल्लव का दोना देकर आदर सहित स्वागत करता है। मधुर-मधुर फल चखाता है, पत्थर की मार सहकर भी अमृत समान फल खिलाता है। अपना सर्वस्व खर्च कर देने पर भी आम का वृक्ष वृद्धावस्था प्राप्त होने पर यज्ञ की समिधा बनकर सेवा करता है, भोजन पकाने के लिए अपनी देह जलाता है, कोयला बनकर भी सोने की गन्दगी धोता है और अपनी उस राख (भस्म) में से अन्न उपजाता है। ठीक आम वृक्ष की मूर्ति अपने सामने आदर्श रूप में रख लें। "तुल्य निन्दा समोस्तुति:" का अर्थ जान लें और सेवा पथ पर बेखटके अग्रसर होते चले जाँय। संसार में ऐसा कोई नहीं है, जो किसी प्रकार की सहायता न चाहता हो और ऐसा भी संसार में कोई व्यक्ति नहीं है, जो दूसरों की कुछ सहायता न कर सकते हों।
( संकलित व सम्पादित)
-अखण्ड ज्योति सितम्बर 1948 पृष्ठ 2
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