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आस्तिक बनो


ईश्वरभक्ति का जितना ही अंश जिसमें होगा,वह उतने ही दृढ़ विश्वास के साथ ईश्वर की सर्वव्यापकता पर विश्वास करेगा, सबमें प्रभु को समाया हुआ देखेगा। आस्तिकता का दृष्टिकोण बनते ही मनुष्य भीतर और बाहर से निष्पाप होने लगता है। अपने प्रियतम को घट-घट में बैठा देखकर वह सबसे नम्रता का, मधुरता का, स्नेह का, आदर का, सेवा का, सरलता, शुद्धता और निष्कपटता से भरा हुआ व्यवहार करता है। भक्त अपने भगवान के लिए व्रत, उपवास, तप, तीर्थयात्रा आदि द्वारा स्वयं कष्ट उठाता है और अपने प्राणबल्लभ के लिए नैवेद्य, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य,भोग-प्रसाद आदि कुछ-न-कुछ अर्पित करता-ही-करता है। स्वयं कष्ट सहकर भगवान को कुछ समर्पण करना, पूजा की संपूर्ण विधि-व्यवस्थाओं का यही तथ्य है। भगवान को घट-घट वासी मानने वाले भक्त अपनी पूजा विधि को इसी आधार पर अपने व्यावहारिक जीवन में उतारते हैं। वे अपने स्वार्थों की उतनी परवाह नहीं करते, खुद कुछ कष्ट भी उठाना पड़े तो उठाते हैं,पर जनता-जनार्दन को,नर-नारायण को अधिक सुखी बनाने में वे दत्तचित्त रहते हैं। लोकसेवा का व्रत लेकर वे घट-घट वासी परमात्मा की व्यावहारिक रूप से पूजा करते हैं। ऐसे भक्तों का जीवन-व्यवहार बड़ा निर्मल, पवित्र, मधुर और उदार होता है। आस्तिकता का यही तो प्रत्यक्ष लक्षण है।


- पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

अखंड ज्योति , दिसंबर 2020


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